Green Building: हरियाली इमारतें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील निर्माण पद्धति हैं। इन इमारतों को डिजाइन और निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे। पुनर्नवीनीकरण योग्य सामग्री और ऊर्जा दक्ष तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। भवन का उन्मुखीकरण सूर्य की रोशनी और हवा के अनुकूल किया जाता है। साथ ही, वर्षा जल संचयन जैसी जल संरक्षण तकनीकें भी अपनाई जाती हैं। कुल मिलाकर, हरियाली इमारतें प्रकृति के साथ सद्भाव बनाए रखते हुए आधुनिक जीवनशैली की जरूरतों को पूरा करती हैं।
Green Building निर्माण (Construction)
हरियाली इमारतों का निर्माण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है:
- पर्यावरण के अनुकूल सामग्री: ईंटों से लेकर सीमेंट तक, निर्माण में ऐसी सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाती हैं। पुनर्नवीनीकरण योग्य सामग्री और स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों को प्राथमिकता दी जाती है।
- ऊर्जा दक्षता: निर्माण प्रक्रिया में ही ऊर्जा दक्षता का ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के लिए, कम ईंधन खर्च करने वाले वाहनों का इस्तेमाल किया जाता है और निर्माण के दौरान धूल को नियंत्रित करने के उपाय किए जाते हैं।
- अपशिष्ट प्रबंधन: निर्माण कार्य के दौरान निकलने वाले कचरे का सही प्रबंधन किया जाता है। पुनर्चक्रण और अपशिष्ट को कम करने की कोशिश की जाती है।
Green Building डिजाइन (Design)
हरियाली इमारतों का डिजाइन प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने के लिए किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण डिजाइन सिद्धांत इस प्रकार हैं:
- निष्क्रिय सौर डिजाइन : सूर्य की रोशनी और गर्मी का अधिकतम लाभ उठाने के लिए खिड़कियों का आकार और दिशा निर्धारित की जाती है। छज्जों का इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से किया जाता है।
- प्राकृतिक वायु संचार: इमारत में हवा के संचार के लिए वेंटिलेशन का विशेष ध्यान रखा जाता है। खिड़कियों और दरवाजों को हवा के प्रवाह को ध्यान में रखकर लगाया जाता है।
- जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन की व्यवस्था की जाती है। साथ ही कम पानी खर्च करने वाले नल और शौचालयों का इस्तेमाल किया जाता है।
- हरियाली छतें और दीवारें: छतों और दीवारों पर पौधे लगाकर इमारत को प्राकृतिक रूप दिया जाता है। इससे इमारत का तापमान नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।
Green Building देखभाल (Maintenance)
हरियाली इमारतों की देखभाल भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना निर्माण और डिजाइन। कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- ऊर्जा निगरानी: बिजली और पानी के खपत पर नज़र रखी जाती है, ताकि किसी भी तरह की लीकेज या बर्बादी को रोका जा सके।
- इनडोर वायु गुणवत्ता: हवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए वेंटिलेशन सिस्टम (ventilation system) की नियमित जांच और सफाई की जाती है।
- हरियाली का देखभाल: छतों और दीवारों पर लगे पौधों की देखभाल समय-समय पर की जाती है।
हरियाली इमारतों के तकनीकी पहलू: गहराई से जानें
आपने Green Buildings या हरियाली इमारतों के बारे में मूलभूत जानकारी तो प्राप्त कर ली है, लेकिन चलिए अब थोड़ा और गहराई से जाते हैं और इन इमारतों के डिजाइन और निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली कुछ खास तकनीकों (techniques) को जानते हैं:
- निष्क्रिय डिजाइन: हरियाली इमारतों में निष्क्रिय डिजाइन सिद्धांतों का काफी महत्व होता है। इसका मतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम लाभ उठाकर कम से कम ऊर्जा खर्च करना। उदाहरण के लिए:
- भवन का उन्मुखीकरण: भवन को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि सूर्य की रोशनी का अधिकतम लाभ मिल सके। ज्यादातर खिड़कियां दक्षिण की ओर बनाई जाती हैं।
- छज्जों का प्रयोग: दक्षिण दिशा से आने वाली तेज धूप को रोकने के लिए छज्जों का इस्तेमाल किया जाता है।
- पवनचक्की और रोशनदान: प्राकृतिक हवा के संचार और रोशनी के लिए खिड़कियों और दरवाजों को सही जगहों पर लगाया जाता है। कुछ मामलों में, पवनचक्की लगाकर वेंटिलेशन में सुधार किया जाता है। रोशनदान भी प्राकृतिक रोशनी लाने में मदद करते हैं।
- सक्रिय प्रणालियाँ: निष्क्रिय डिजाइन के साथ-साथ हरियाली इमारतों में सक्रिय प्रणालियाँ का भी इस्तेमाल किया जाता है। ये ऐसी प्रणालियाँ हैं जिनको चलाने के लिए थोड़ी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, लेकिन फिर भी कुल मिलाकर ऊर्जा की बचत होती है। उदाहरण के लिए:
- सौर पैनल (Solar Panel): छतों पर सौर पैनल लगाकर बिजली का उत्पादन किया जाता है।
- LED लाइट्स (LED Lights): कम ऊर्जा खर्च करने वाली LED लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है।
- रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (Rainwater Harvesting System): वर्षा जल संचयन के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाता है, जिससे एकत्रित पानी का शौचालयों में फ्लशिंग और बागवानी जैसे कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- निर्माण सामग्री: हरियाली इमारतों में इस्तेमाल की जाने वाली निर्माण सामग्री का भी पर्यावरण पर कम से कम प्रभाव पड़ना चाहिए। कुछ उदाहरण हैं:
- पुनर्नवीनीकरणीय सामग्री: रीसायकल की हुई धातुओं और लकड़ियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री: परिवहन में लगने वाली ऊर्जा को कम करने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध ईंटों, पत्थरों जैसी सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।
- वाष्परोधक पदार्थ: इमारत को ठंडा रखने के लिए छतों पर या दीवारों में वाष्परोधक पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है।