Monsoon 2024: भारत के कृषि और समग्र अर्थव्यवस्था के लिए दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना है। Monsoon 2024 का असमान वितरण जलवायु परिवर्तन के प्रति भारतीय कृषि की भेद्यता को उजागर करता है। जल संरक्षण, सूखा प्रतिरोधी फसलों और जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाओं को अपनाकर, हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं और अधिक टिकाऊ और जलवायु-अनुकूल कृषि प्रणाली विकसित कर सकते|
Monsoon 2024 जल्दी आगमन:
2024 में मानसून का आगमन 30 मई को केरल पहुंचा, जो सामान्य शुरुआती तारीख 12 जून से 12 दिन पहले था। यह 1949 के बाद मानसून आगमन का दूसरा सबसे जल्दी रिकॉर्ड है।
इस शुरुआती आगमन ने देश के कई हिस्सों, खासकर उन क्षेत्रों में किसानों को उम्मीद जगाई जहां कम बारिश होती है।
Monsoon 2024: असमान वितरण और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
असमान बारिश पैटर्न:
यद्यपि 2024 में मानसून का आगमन जल्दी हुआ, लेकिन इसकी देश भर में वितरण असमान रहा है।
- कुछ क्षेत्रों, खासकर दक्षिण-पश्चिम भारत में, ने सामान्य से अधिक बारिश का अनुभव किया है।
- दूसरी ओर, केरल और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में, जिनमें मई में चक्रवात रमाल से प्रभावित क्षेत्र भी शामिल हैं, सामान्य से कम बारिश हुई है।
यह असमान वितरण विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:
- भौगोलिक स्थिति: पश्चिमी घाटों जैसे पर्वत श्रृंखलाएं बारिश के पैटर्न को प्रभावित करती हैं, पश्चिमी तट पर अधिक वर्षा लाती हैं और पूर्वी क्षेत्रों में कम।
- चक्रवाती गतिविधि: चक्रवात और तूफान भारी बारिश ला सकते हैं, लेकिन वे स्थानीयकृत क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और दूसरों में सूखा हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन मौसम की अस्थिरता और अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं को बढ़ा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप असमान बारिश पैटर्न हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रति भेद्यता:
यह असमान वितरण भारत की कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाता है, जो पहले से ही सूखे, बाढ़ और चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित है।
- सूखा: कम बारिश वाले क्षेत्रों में, सूखा एक गंभीर खतरा है, जिससे फसल विफलता और किसानों के लिए आय में कमी हो सकती है।
- बाढ़: भारी बारिश वाले क्षेत्रों में, बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है, बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकती है और जीवन को खतरे में डाल सकती है।
- अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की बढ़ती अनिश्चितता किसानों के लिए योजना बनाना और अपनी फसलों की रक्षा करना मुश्किल बना देती है।
क्या किया जा सकता है:
इस चुनौती का सामना करने के लिए, कई उपाय किए जा सकते हैं:
- जल संरक्षण: जल संरक्षण तकनीकों को अपनाना, जैसे कि वर्षा जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल सुरक्षा में सुधार करने में मदद कर सकता है।
- सूखा प्रतिरोधी फसलें: सूखा प्रतिरोधी फसलों की किस्मों को विकसित करना और अपनाना किसानों को सूखे की स्थिति में बेहतर उत्पादकता बनाए रखने में मदद कर सकता है।
- जलवायु-स्मार्ट कृषि: जलवायु-स्मार्ट कृषि अभ्यासों को अपनाना, जैसे कि मौसम की भविष्यवाणी का उपयोग और जमीन प्रबंधन तकनीकों में सुधार, किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने में मदद कर सकता है।
- सरकारी नीतियां: सरकार जलवायु-अनुकूल कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने, किसानों को सहायता प्रदान करने और जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करने के लिए नीतियां बना सकती है।
चिंताएं और भविष्यवाणियां:
कुछ क्षेत्रों में शुरुआती कमी से सूखे की स्थिति पैदा होने की आशंका है, जिससे किसानों और फसलों को नुकसान हो सकता है।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने पूरे भारत में औसत से अधिक बारिश (दीर्घकालिक औसत वर्षा का 106%) होने का अनुमान लगाया है।
हालांकि, निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसियों ने “सामान्य” मानसून सीजन की भविष्यवाणी की है।
निगरानी का महत्व:
जल संसाधन प्रबंधन और कृषि योजना के लिए मानसून की प्रगति की बारीकी से निगरानी करना महत्वपूर्ण है।
किसानों को वास्तविक समय के वर्षा डेटा के आधार पर अपनी बुवाई और सिंचाई रणनीतियों को अनुकूलित करने की आवश्यकता है।
अतिरिक्त जानकारी के लिए स्रोत:
- भारतीय मौसम विभाग (IMD): https://mausam.imd.gov.in/
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार: https://agriwelfare.gov.in/
अतिरिक्त मुद्दे:
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सहायता: सूखा प्रभावित क्षेत्रों में किसानों की सहायता के लिए सरकार द्वारा लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।
- जल संरक्षण: भारत की मानसून निर्भरता को कम करने के लिए जल संरक्षण बुनियादी ढांचे में दीर्घकालिक निवेश महत्वपूर्ण हैं।
- सूखा प्रतिरोधी फसलें: सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों का विकास और उपयोग भी महत्वपूर्ण है।
Monsoon 2024 की शुरुआत जल्दी हुई, लेकिन इसका वितरण असमान रहा है।
यह महत्वपूर्ण है कि हम मानसून की प्रगति की बारीकी से निगरानी करें और किसानों को सूखे जैसे संभावित खतरों के लिए तैयार रहने में मदद करें।
जल संरक्षण और सूखा प्रतिरोधी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देकर भारत की मानसून निर्भरता को कम करने के लिए दीर्घकालिक उपाय भी किए जाने चाहिए।