Warli Painting History: वारली चित्रकला, जनजातीय कला का एक रूप है, जिसकी जड़ें महाराष्ट्र की संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई हैं। इस कला के इतिहास और उत्पत्ति को लेकर बहस है, लेकिन माना जाता है कि यह भारत की सबसे पुरानी चित्रकलाओं में से एक है।
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संभावित समय सीमा: Warli Painting History
- कुछ विद्वानों का मानना है कि वारली चित्रकला की उत्पत्ति 10वीं शताब्दी ईस्वी या उससे भी पहले की हो सकती है।
- वारली शब्द की उत्पत्ति “वारली” शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है “जोती हुई भूमि का छोटा टुकड़ा”।
- यह कला आदिवासी जनजाति “वारली” लोगों की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है।

कला की विशेषताएं: Warli Painting History
- वारली चित्रकला मुख्य रूप से मिट्टी की दीवारों पर सफेद रंग से बनाई जाती है।
- कभी-कभी लाल या पीले रंग के बिंदुओं का भी इस्तेमाल किया जाता है।
- सफेद रंग चावल के आटे और पानी के मिश्रण से बनाया जाता है, जिसे गोंद से जोड़ा जाता है।
- बांस की एक छड़ी को चबाकर नरम करके तूलिका के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- ज्यामितीय आकारों, जैसे कि वृत्त, त्रिकोण और वर्गों का प्रयोग कर चित्र बनाए जाते हैं।
- हर आकृति का एक खास अर्थ होता है, उदाहरण के लिए वृत्त का अर्थ सूर्य और चंद्रमा होता है।
- चित्रों में प्रकृति, दैनिक जीवन, शिकार, त्योहार, नृत्य और देवी-देवताओं को दर्शाया जाता है।

पारंपरिक महत्व:
- वारली चित्रकला को पारंपरिक रूप से महिलाएं बनाती थीं।
- यह चित्रकला सामुदायिक समारोहों और धार्मिक अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।
- माना जाता है कि ये चित्र शुभता लाते हैं और बुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं।

आधुनिक पुनरुत्थान: Warli Painting History
- 1970 के दशक में वारली चित्रकला को आधुनिक दुनिया के सामने लाया गया।
- इसे पहले आदिवासी कला के रूप में ही जाना जाता था, बाद में इसे “वारली चित्रकला” नाम दिया गया।
- आज, वारली चित्रकला न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे भारत में लोकप्रिय है।
- इसे दीवारों, कपड़ों, और अन्य वस्तुओं पर बनाया जाता है।
वारली चित्रकला अपनी सादगी और सारगर्भित शैली के लिए जानी जाती है। यह आदिवासी संस्कृति की समृद्ध विरासत को दर्शाती है और हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने का पाठ पढ़ाती है।
