Shivrajyabhshek Sohala (शिवराज्याभिषेक समारोह): छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

Anant Kachare
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Shivrajyabhshek Sohala

Shivrajyabhshek Sohala शिवराज्याभिषेक, जिसे राज्याभिषेक सोहला के नाम से भी जाना जाता है, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह वह दिन था, 6 जून, 1674 को, जब महाराष्ट्र के महान मराठा शासक, छत्रपति शिवाजी महाराज को औपचारिक रूप से राजा के रूप में ताज पहनाया गया था।

Shivrajyabhshek Sohala
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शिवराज्याभिषेक का महत्व: Shivrajyabhshek Sohala

  • स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना: शिवराज्याभिषेक ने एक स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना को चिन्हित किया। इससे पहले, मराठा क्षेत्र मुगल साम्राज्य के अधीन था। शिवाजी महाराज ने स्वराज की स्थापना की महत्वाकांक्षा के साथ अपना शासन शुरू किया, जिसका अर्थ है “अपना शासन।” उनके राज्याभिषेक ने इस लक्ष्य की प्राप्ति को चिन्हित किया।
  • छत्रपति की उपाधि: राज्याभिषेक के दौरान, शिवाजी महाराज को “छत्रपति” की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है “सर्वोच्च संप्रभु।” यह उपाधि उनकी शक्ति और स्वतंत्रता को दर्शाती है।
  • मराठा साम्राज्य का उदय: शिवराज्याभिषेक मराठा साम्राज्य के उदय का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है। शिवाजी महाराज के मजबूत नेतृत्व और कुशल रणनीति के तहत, मराठा साम्राज्य एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में विकसित हुआ।
  • सामाजिक सुधार: शिवराज्याभिषेक के बाद, शिवाजी महाराज ने एक कुशल और न्यायपूर्ण प्रशासन स्थापित किया। उन्होंने जाति व्यवस्था के कठोर नियमों को कम करने और अपने राज्य में सभी धर्मों के लोगों के लिए समानता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए।
Shivrajyabhshek Sohala
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शिवराज्याभिषेक समारोह: Shivrajyabhshek Sohala

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, Shivrajyabhshek Sohala एक भव्य आयोजन था। इसमें विद्वानों, पुजारियों और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति थी। ज्योतिषियों द्वारा शुभ मुहूर्त निकाला गया था और शिवाजी महाराज को वैदिक मंत्रों के साथ राजा के रूप में सिंहासन पर बैठाया गया था।

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आज का महत्व: Shivrajyabhshek Sohala

शिवराज्याभिषेक आज भी भारत में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में मनाया जाता है। यह दिन शिवाजी महाराज के साहस, वीरता और स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष को याद करने का अवसर है। यह दिन हमें एकजुटता, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के मूल्यों को याद दिलाता है, जिनके लिए शिवाजी महाराज खड़े थे।

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